मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

अपनी आत्मरक्षा हेतु ...

अपनी आत्मरक्षा हेतु
उसने भी अब
हथियार उठाना सिख
लिया है
प्रतिक्रिया स्वरूप
परिणाम जानते हो
इसका  ??
बड़ी तेजी से स्त्रैण
गुणों का नष्ट होना
आज दो
कल दो सौ
परसो दो हजार
असंख्य
गुलाब गैंगों का
अस्तित्व में आना    … !

13 टिप्‍पणियां:

  1. सच कहा....
    कोई और विकल्प भी तो नहीं ...

    सादर
    अनुलता

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 4-12-2014 को चर्चा मंच पर गैरजिम्मेदार मीडिया { चर्चा - 1817 } में दिया गया है
    धन्यवाद

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  3. परमात्मा स्त्रैण है... तभी तो उनकी दाढ़ी-मूँछ वाली तस्वीर नहीं पाई जाती... यही नहीं उनके चेहरे भी (जैसा आम तौर पर हम चित्रों अथवा मूर्तियों में देखते आये हैं) स्त्रैण हैं... पता नहीं स्त्रैण का गुम हो जाना एक शुभ संकेत है या विषाद का विषय... लेकिन परिस्थितियाँ ऐसी ही बन रही हैं... स्त्रैण गुणों का लोप ईश्वरत्व का तिरोहित हो जाना ही कहा जाएगा... वे हाथ जो पालना झुलाते हैं, वही हुक़ूमत भी करते हैं!
    इस कविता में सचमुच एक आक्रोश तो छिपा है ही, लेकिन एक विनाश की आशंका भी छुपी है... जर्जर समाज के विनाश की!!

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    1. इस प्रेरक टिप्पणी के लिए बहुत बहुत आभार भाई :)

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  4. सुप्रभात
    समसामयिक सूत्र और संयोजन |

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  5. पीडिता का पीठ दीवाल पर लग गया है ..उसके पास और उपाय नहीं है ...
    ऐ भौंरें ! सूनो !

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  6. स्त्रियों में स्त्रैण गुणों का विलुप्त होना दुखद माना जाना चाहिए ! लेकिन इस स्थिति के लिये ज़िम्मेदार कौन हैं यह भी चिंतनीय है ! नारी के नारीत्व का जब सम्मान करना लोग छोड़ देंगे व उसे कदम-कदम पर अपमानित और शोषित करेंगे तो ऐसे ही परिणाम सामने आयेंगे ! बेहतरीन प्रस्तुति माहेश्वरी जी !

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  7. ji bahut sunder gulaabi gang taiyaar honi chahiye ....virodh zaari rahna chahiye.....saarthak prastuti

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  8. बहुत सुंदर। होना भी यही चाहिये । ऐसा स्त्रीत्व किस काम का जो हमें रौंदा जाने को प्रस्तुत करे। ताकत और हिम्मत बहुत जरूरी है।

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  9. आक्रोश के पल्लव लिए ... पर शायद आज की जरूरत भी ...

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  10. आज के दौर में स्त्रियों को अपने आत्मसम्मान व रक्षा के लिए दुर्गा के स्वरुप में आना वक्त की मांग हो गई है

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